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वैवाहिक अपराधों में FIR रद्द करने का स्वागत है : दिल्ली उच्च न्यायालय

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि वैवाहिक अपराधों में प्राथमिकी रद्द करने का स्वागत है क्योंकि यह दर्शाता है कि दोनों पक्षों ने विवाद और क्लेश पर विराम लगाने का फैसला किया है।

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांत शर्मा ने, अपने ससुर और अन्य के खिलाफ बलात्कार एवं निर्ममता बरतने के अपराधों को लेकर एक महिला द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी को रद्द करते हुए कहा कि वैवाहिक मामलों में निर्ममता के अपराधों के साथ यौन उत्पीड़न के आरोप का इस्तेमाल करने पर रोक लगाने की जरूरत है। साथ ही, न्यायाधीश ने कहा कि सुलह यथाशीघ्र विवादों को सुलझाने के लिए सर्वश्रेष्ठ संभावित उपाय है।

न्यायाधीश ने शिकायतकर्ता के रुख की सराहना की- जिसने अपनी इच्छा से सुलह कर ली- और धारा 376 (बलात्कार)/ 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध)/498-ए (पति या पति के रिश्तेदार द्वारा महिला के साथ बर्बरता करना) को रद्द कर दिया । साथ ही, याचिकाकर्ताओं को दो अधिवक्ताओं के कल्याण कोष में, प्रत्येक में 12,500 रुपये जमा करने का निर्देश दिया।

अदालत ने दो जून के अपने आदेश में कहा, ‘‘किसी भी मामले का खत्म हो जाना एक स्वागत योग्य कदम है क्योंकि यह अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या को घटाता है। इसके अलावा, वैवाहिक अपराधों में मामले को रद्द किये जाने का स्वागत है क्योंकि यह दर्शाता है कि दोनों पक्षों ने विवाद और क्लेश को खत्म करने का फैसला किया है। ’’

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘आजकल भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 354 का इस्तेमाल धारा 498-ए के साथ किया जाता है, जबकि बाद में सुलह हो जाती है और इस अदालत में मामले को रद्द करने के लिए लाया जाता है, इस (चलन) पर रोक लगाने की जरूरत है। ’’

अदालत ने कहा, ‘‘इस मामले ने अदालत और जांच एजेंसी का बहुत अधिक समय लिया। सुलह काफी पहले हो जानी चाहिए थी। हालांकि, इस आदेश के जरिये समाज को यह संदेश देना है कि विवादों को सुलझाने के लिए सुलह सर्वश्रेष्ठ संभावित उपाय है। ’’

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