शिक्षा धनोपार्जन और बाजारीकरण के बिना हर नये जीवन में शिक्षा को बोना जरूरी है। लगभग एक शताब्दी के विलम्ब के बाद यथास्थितियों में जीना दुभाग्यपूर्ण है। हमारा जीना गरीबी और शोषण से मुक्त होना चाहिए। हमें जीवन का सत्य प्राप्त कर जीवन मूल्यों को अपने जीवन में पिरोना चाहिए ना कि कागजोें से जुडकर कागजों की भांति वजनहींन और संवेदनहींन हो जाना चाहिए। हमारे जीवन में निरा कागजीपन है, कोरापन है। हम कागजी आंखों व कानों हाथों पैरों से कार्य करते हैं जो जारी वर्तमान अन्तराष्ट्रीय हितों के प्रति कर्तव्य विमूढ है। हमारा व्यक्तिवादी हितों का संकरापन विकास की अन्तर्राष्ट्रीय सीढियों पर चढ नहीं सकता क्योंकि पूरे देश की कागजी योग्यता क्षमता ही अधिकाधिक है और उसी को दोहराया जा रहा है। हमें कथनी के कागजों से देश निर्माण का पूर्वाभ्यास नहीं करना अपितु वास्तविकता के साथ जुडना और कर्तव्यों के द्वारा उसको सही अन्जाम तक पहुंचाना है।
हमें संकरी व्यक्तिवादी जारी यथास्थिति वाला जीवन नहीं चाहिए अपितु विश्व व्यापक जीवन प्रणाली चाहिए जिसका सजीव चेतन जीवन प्रणाली का व्यापक कार्यान्वयन बिना कागजी योग्यता के चल रहा है।
लेखक – चित्रश्याम शर्मा(विनय), देहरादून