देश के निर्माण के लिए वर्तमान को चारित्रिक जीवन की सीख देने की सबसे अधिक आवश्यकता है और कथनी के भ्रष्ट कागजी माध्यम को छोड देने सर्वाधिक जरूरत है। हमारे देश में गरीबी का प्रमुख कारण शिक्षा में कागजी माध्यम और कागजी कार्य प्रणाली का होना है। देश में कथनी का पाठ्य कार्यक्रम का जारी रहना विचारहींनता और कि कर्तव्य विमढता का सबूत है। जिसको बार-बार बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। देश की शिक्षा के द्वारा धनोपार्जन किया जाना बाजारीकरण का उदाहरण है जिसे जारी रखना राष्ट्रीय नीति के विरद्ध है क्योंकि हर इकाई को कथनी के विपरीत करनी और कर्तव्य एवं निष्काम कर्म से जोडना गरीबी दूर करने के साथ राष्ट्र के समूचे हितों के निकट लाना है ताकि दूरदर्शी हितों का लाभ उठाया जा सके। भविष्य में कथनी की अपेक्षा करनी और कर्तव्य हर जीवन के लिए जरूरी है। व्यक्तिवादी संकीर्ण सोच से बाहर निकलना सामाजिक हितों में सहायक हो सकता है। लगभग एक शताब्दी की आजादी के बाद भी हम यथास्थिति में जी रहे हैं। हमारे जीने का पेटर्न सड़ा-गला है। हमे निष्काम कर्म के द्वारा सबके हितों में जीना चाहिए। हमारी करनी और कर्तव्य सामाजिक और राष्ट्रीय हितों में व्यापक और बहुमुखी हो तो सरल और सहज जीवन की शुरूआत होगी और कोई भी गरीब व निर्धन नहीं होगा। भारत की शिक्षा कथनी कागजों में नहीं अपितु हर जीवन में होनी चाहिए।
लेखक – चित्रश्याम शर्मा(विनय), देहरादून